हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह पर्व करवा चौथ के बराबर होता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन भोजन और जल ग्रहण नहीं किए बिना दूसरे दिन स्नान-पूजा के बाद व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत को करने पर सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से इस व्रत की शुरुआत हुई। इस दिन जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं, उनका सुहाग लंबे समय तक बना रहता है।
इसके पीछे आशय यह होता है कि जिस प्रकार तपस्या करने से माता पार्वती को भगवान शिव जैसे पति की प्राप्ति हुई, वैसे ही व्रत करके और शिव-पार्वती की पूजा करके उन्हें भी भविष्य में अच्छा जीवनसाथी मिले। इसलिए कुछ घरों में कुंवारी कन्याओं को भी यह व्रत करवाया जाता है
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है।